Wednesday, December 22, 2010

नई राह

"कसमेँ खाईँ थी हमने जिन राहोँ पर साथ चलने की;
उन राहोँ से आज मैँ अकेला गुज़र आया।
देखना है कहाँ ले जातीँ हैँ ये राहेँ मुझे;
मैँ तो बेपरबाह इन अनजानी राहोँ पर चलता चला आया।
सच कहता हूँ कि अब दिल्लगी नहीँ मुझे तुझसे कोई;
मगर मेरे साथ मेरा बीता हुआ कल यूँ ही चला आया।
कभी लगता है कि साथ चला आ रहा है कोईँ;
खुश हो जाता हूँ कि शायद ये तुम हो;
भूल जाता हूँ कि हर रिश्ता जो मेरा तुमसे था;
तुम्हारी डोली मेँ फूलोँ की जगह लगा आया।
क्योँ कहूँ कि मेरा हक़ था तुम पर कभी;
मेरे हाथोँ पर लगा तेरी मेहँदी का वो रंग;
मैँ आँसुओँ की झील मेँ बाखुशी धो आया।

कसमेँ खाईँ थी हमने जिन राहोँ पर साथ चलने की;
उन राहोँ से आज मैँ अकेला गुज़र आया।"