चाँद फिर निकला उनकी याद लेकर,
बैठे हैं हम भी दिल की थाली संजो कर,
पाले हैं दिल में अरमान कितने,
बसे हैं आँखों में उनके ही सपने ,
देखता हूँ चाँद में जब उनका चेहरा,
लगता है बन जाऊं कोई टूटा हुआ तारा,
जा मिलूँ उनसे और कह डालूँ हाले दिल सारा,
फिर सोचता हूँ की गर बना टूटा हुआ कोई तारा,
न मिल पाऊँगा उनसे कभी दोबारा,
फूटती है रौशनी की इक मासूम किरण,
कर देती है रोशन दिल का गुलशन,
गुनगुनाती है एक मुधुर आवाज़ तभी झनकार बनकर,
तुम न आ सके तो क्या,
लो हम ही आ गए आपकी याद बनकर,
फिर होते हैं वो , हम और यादों के सागर की लहर,
सोचते हैं हम,छाई रहे ये रात यूँही,
न हो कभी बेरहम सहर॥