Sunday, April 11, 2010

कोना


तन्हाई में छिपके रोना आदत है मेरी;

अकेले में होती यही हालत है मेरी,

कभी देखता हूँ गर्दिश में तारों को चमकते हुए;

कभी देखता हूँ गुलशन में फूलों को महकते हुए

कोयल के साथ साथ गाना आदत है मेरी,

परिंदों को आसमान नापते देखकर ;

मचल जाता है दिल उनको गगन चूमते देखकर;

उनके पंखों की सवारी की खवाहिश है मेरी;

मिलता है सुकून जन्नत का सा जब ;

छिपती है माँ आँचल में मुझे ;

जिंदगी की सबसे बड़ी यही राहत है मेरी,

रात-दिन, शाम-ओ-सहर सब बड़ी चीजें है ;

जिन्दगी का हर पल जी भर के जीना;

एक! बस एक यही चाहत है मेरी।










1 comment: