Sunday, May 1, 2011

कोशिश


लाख कहूँ कि भुला दिया तुझे,
बनाया था मिलकर सपनोँ का जो घरौँदा,
कब का गिरा दिया उसे;पर,
इस दिल के किसी कोने मेँ, 
आबाद तेरी याद, आज भी है ।

मेरी महफिल के जामोँ की साखी नहीँ न सही,
मेरी तन्हाइयोँ की गुजर की हमसफर;
तू आज भी है ।

लाख खुशबुएँ लगायीँ;
तेरी खुशबू मिटाने को; मगर
मेरी साँसोँ मेँ तेरी खुशबू का वजूद,
महफूज आज भी है।


  निकला था सोच कर घर से कि
मिटा आऊँगा हर वो चीज, 
जो याद दिलाती है तेरी; मगर,
मेरे सीने मेँ धड़कन बनकर,
धड़कती हर लम्हा तू आज भी है ।

इस दिल के किसी कोने मेँ,
आबाद तेरी याद;आज भी है।