यदि तुम वर में होतीं,
तो बनके साधक,
करके तप कठोर,
मांग लेता विधि से तुम्हें मैं।
होतीं पुष्प में यदि तुम,
सुरभित कुसुमित सुगन्ध सी
तो बन मकरन्द,
समा लेता स्वयं में तुम्हें मैं।
होतीं यदि तुम नीर में
चंचल, अविरल, तरंग सी
तो बन सिंधु अगाध
भर लेता आलिंगन में तुम्हें मैं।
होतीं तुम वायु में यदि,
शीतल, निर्मल प्राण सी,
तो भरके गहरी एक स्वांस,
फिर दूसरी न लेता कभी मैं।
बहुत ढूंढा मैंने तुमको,
प्रकाश के अपसार में,
तिमिर के अभिसार में,
संसार के विस्तार में,
पर तुम मिलीं मुझको
काव्य में, अनुराग में, बैराग में,
तो लगा हूँ सहेजने को तुम्हें मैं,
गीत में, प्रीति में, रस रीति में।
Thursday, January 13, 2022
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