
देखा है मैंने जीत को;
हार की कोख से निकलते हुए,
देखी है मैंने विजय भी ;
मुट्ठियों से फिसलते हुए,
है ज़रूरी बहकाव भी ;
किसी राह पर चलते हुए;
देखा है मैंने विचलनों से द्रढ़ता को पनपते हुए।
है भरी राह निपट काँटों से अगर,
है साथ लिए नयी मुश्किल हर डगर ;
बढाओ कदम साहस से,
हर विपदा को कुचलते हुए,
निश्चय है मंजिल होगी,
अति विरली और सुन्दर,
देखा है मैंने पुष्पों को,
काँटों के बीच महकते हुये।